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ऋगवेद

In Uncategorized on जुलाई 15, 2012 at 6:47 बिहान

ऋगवेद मण्डल १ सूक्त १(मंत्र १-९)

अग्निर्देवता वैश्वामित्रो मधुच्छन्दा ऋषिर्गायत्री छन्दः ८/८/८
अ॒ग्निमी॑ळेपुरोहि॑तं यज्ञस्यदे॒॑वमृ॒त्विज॑म। होतारं॑रत्न॒धातम॑म।।१॥

अ॒ग्निःपू॑र्वेभि॒रृषि॑भिरीड्यो॒नूत॑नैरु॒त। सदे॒वाँएहव॑क्षति॥२॥

अ॒ग्निना॑र॒यिम॑श्नव॒त्पोष॑मेव॒दि॒वेदि॒वे। य॒शसं॑वी॒रव॑त्तमम॥३॥

अग्ने॒यंय॒ज्ञम॑ध्व॒रं वि॒श्वतः॑ परि॒भूरसि॑। सइद्दे॒वेषु॑गच्छति॥४॥

अ॒ग्निर्होता॑क॒विक्र॑तुः स॒त्यश्चि॒त्रश्र॑वस्तमः। दे॒वोदे॒वेभि॒राग॑मत्॥५॥

यद॒ङ्गदा॒शुषे॒त्वमग्ने॑भ॒द्रंक॒रि॒ष्यसि॑। तवेत्तत्स॒त्यम॑ङ्गिरः॥६॥

उप॑त्त्वाग्नेदि॒वेदि॑वे॒ दोषा॑वस्तर्धि॒याव॒यम्। नमो॒भर॑न्त॒एम॑सि॥७॥

राज॑न्तमध्व॒राणां॑ गो॒पामृ॒तस्य॒ दीदि॑विम्। वर्ध॑मा॒नंस्वेदमे॑॥८॥

सनः॑पि॒तेव॑सू॒नवे ग्ने॑सूपाय॒नोभ॑व। सच॑स्वानः स्व॒स्तये॑॥९॥

(स्वर साभार आइ.आइ.एस.एच.)

अ॒ग्निमी॑ळेपुरोहि॑तं यज्ञस्यदे॒॑वमृ॒त्विज॑म। होतारं॑रत्न॒धातम॑म।।१॥

अ॒ग्निम=आगिक; ई॒ले॒=हम प्रार्थना करै छी; पु॒रःऽहि॑तम=पुरहित; य॒ज्ञस्य॑= यज्ञक; दे॒वम=दैबला; ऋत्विजम= ऋतु सभमे पूजैबला; होता॑रम=बजबैबला; र॒त्न॒धात॑मम=सभसँ नीक धन दैबला।

हम यज्ञ दैबला पुरहित, ऋतु सभमे पूजैबलाकेँ बजबैबला, सभसँ नीक धन दैबला अग्निक प्रार्थना करै छी।

अ॒ग्निःपू॑र्वेभिरृषि॑भिरीड्यो॒नूत॑नैरु॒त। सदे॒वाँएहव॑क्षति॥२॥

अ॒ग्निः=आगि; पू॑र्वेभिः= अदौक; ऋषि॑भिः= ऋषि सभसँ; ईड्यः॑= प्रार्थना योग्य; नूत॑नै:= नव सन; उ॒त= सेहो; सः=ओ; दे॒वान= देवता सभकेँ; एह= एतऽ; व॑क्षति= आनैए।

अदौ संग नव ऋषि सभसँ सेहो प्रार्थना योग्य ओ अग्नि देवता सभकेँ एतऽ आनैए।

अ॒ग्निना॑र॒यिम॑श्नव॒त्पोष॑मेव॒दि॒वेदि॒वे। य॒शसं॑वी॒रव॑त्तमम॥३॥

अ॒ग्निना॑= आगिक संग; र॒यिम॑= धनकेँ; अश्नव॒त्= भोगू; पोष॑म= पुष्टाइकेँ; ए॒व= अहि; दि॒वेदि॒वे= सभ दिन; य॒शसं॑= यशयुक्त; वी॒रव॑त्तमम= अनन्य वीरपुत्रबला।

आगिक संग जे धन यशसँ प्राप्त आ अनन्य वीरपुत्रक संग अछि, सभ दिन भोगू से पुष्टिवर्धक अछि।

अग्ने॒यंय॒ज्ञम॑ध्व॒रं वि॒श्वतः॑ परि॒भूरसि॑। सइद्दे॒वेषु॑गच्छति॥४॥

अग्ने॒= यौ अग्नि, यंय॒ज्ञ= यम् + य॒ज्ञम्= जइ यज्ञकेँ, अ॒ध्व॒रम्= सरल भावक, वि॒श्वतः॑= सभ दिससँ, प॒रि॒ऽभूः= घेरैबला, असि= अहाँ छी, सः = ओ, इत्= सएह, दे॒वेषु॑- देवता लग, ग॒च्छ॒ति= जाइए

यौ अग्नि, सरल भावक जइ यज्ञकेँ अहाँ चारू दिससँ घेरै छी, सएह देवता लोकनि लग पहुँचैए।

अ॒ग्निर्होता॑क॒विक्र॑तुः स॒त्यश्चि॒त्रश्र॑वस्तमः। दे॒वोदे॒वेभि॒राग॑मत्॥५॥

अ॒ग्निर्होता॑= अग्नि + होता= अग्नि, होता (आह्वान करैबला पुरहित), क॒विक्र॑तुः= कवि (ऋषि) सन प्रज्ञाबला, स॒त्यश्चि॒त्रश्र॑वस्तमः= स॒त्त्यः+ चि॒त्रश्र॑वःऽतमः= सत्याश्रित, भयंकर कीर्तियुक्त, दे॒वोदे॒वेभि॒राग॑मत् = दे॒वः, दे॒वेभिः॑+आ+ग॒म॒त्= देव, देवता सभक संग, आबथु

होता कवि सन बुद्धिबला, सत्याश्रित, भयंकर कीर्तिबला अग्नि देव आ देवता सभक संग हमरालग आबथु।

यद॒ङ्गदा॒शुषे॒त्वमग्ने॑भ॒द्रंक॒रि॒ष्यसि॑। तवेत्तत्स॒त्यम॑ङ्गिरः॥६॥

यद॒ङ्ग= यत् + अ॒ङ्ग= जे, यौ, दा॒शुषे॒= दैबलाले, त्वम्= अहाँ, अग्ने॑= यौ अग्नि, भ॒द्रम्= कल्याण, क॒रि॒ष्यसि॑= करब। तवेत्तत्स॒त्यम॑ङ्गिरः= तव॑+इत् +तत्+ स॒त्यम्+ अ॒ङ्गि॒रः॒= अहाँक, अवश्य, ओ सत्य, यौ अङ्गिरा-अग्नि।

यौ अग्नि, अहाँ दैबलाक कल्याण करब, यौ अङ्गिरा-अग्नि, अहाँलेल ई सत्य अछि।

उप॑त्त्वाग्नेदि॒वेदि॑वे॒ दोषा॑वस्तर्धि॒याव॒यम्। नमो॒भर॑न्त॒एम॑सि॥७॥

उप॑त्त्वाग्ने= उप+त्वा॒ +अ॒ग्ने॒= लग, अहाँकेँ, यौ अग्नि, दि॒वेदि॑वे॒= सभ दिन, दोषा॑वस्तर्धि॒या= दोषा॑+ऽवस्तः+धि॒या= साँझ-भोर, भक्तिसँ, व॒यम्= हम सभ, नमो॒भर॑न्त॒= नमः॑+भर॑न्तः= नमस्कार, सम्पादित करैत, एम॑सि= अबै छी।

यौ अग्नि, हम सभ सभ दिन साँझ-भोर अहाँ लग भक्तिसँ नमस्कार सम्पादित करैत अबै छी।

राज॑न्तमध्व॒राणां॑ गो॒पामृ॒तस्य॒ दीदि॑विम्। वर्ध॑मा॒नंस्वेदमे॑॥८॥

राज॑न्तम्= दीप्तिमानकेँ, अध्व॒राणाम्= यज्ञक, गो॒पाम्= रक्षक, ऋ॒तस्य= सत्यक, दीदि॑विम्= खूब प्रकाश करैबलाकेँ, वर्ध॑मा॒नम्= बढ़ैबलाकेँ, स्वे= अपन, दमे॑= घरमे।

दीप्तिमान यज्ञक रक्षक सत्यकेँ खूब प्रकाश दैबला आ अपन घरमे बढ़ैबला।

सनः॑पि॒तेव॑सू॒नवे ग्ने॑सूपाय॒नोभ॑व। सच॑स्वानः स्व॒स्तये॑॥९॥

सनः॑= सः+नः॒= ओ, हमरा सभले, पि॒तेव॑सू॒नवे= पि॒ताऽइ॑व+ सू॒नवे॑= पिता सन, पुत्र लेल, ग्ने॑सूपाय॒नोभ॑व= अग्ने॑+ सु॒ऽउ॒पा॒य॒नः+भ॒व॒= यौ अग्नि, सुखसँ प्राप्तमान, हुअए; सच॑स्वानः= सच॑स्व+ नः॒= भेँट होउ, हमरा सभक, स्व॒स्तये॑= कल्याण लेल।

ऋगवेद मण्डल १ सूक्त

वायुर्देवता वैश्वामित्रो मधुच्छन्दा ऋषिर्गायत्री छन्दः ८/८/८

वाय॒वायो॑हिदर्शते॒मेसोमा॒अरं॑कृताः। तेषां॑पाहिश्रु॒धीहवम्।।१॥

(स्वर साभार आइ.आइ.एस.एच.)

वाय॒वायो॑हिदर्शते॒मेसोमा॒अरं॑कृताः। तेषां॑पाहिश्रु॒धीहवम्।

वाय॒वायो॑हि= वायो॑+ आया॒हि॒= यौ वायु, आउ; दर्शते॒मे= द॒र्श॒त॒ + इ॒मे= यौ दर्शनयोग्य, ई; सोमा॒अरं॑कृताः= सोमाः +अरं॑कृताः= सोम, सजल; तेषा॑म्= ओकरा, पा॒हि॒= पूबू, श्रु॒धि= सुनू, हव॑म्= हकारकेँ।

यौ दर्शनयोग्य वायु, आउ, ऐ सज्जित सोमरसकेँ पीबू, हकार सुनू।

मिथिलाक सभ जाति आ धर्मक संस्कार, लोकगीत आ व्यवहार गीत-19-46

In Uncategorized on सेप्टेम्बर 5, 2010 at 6:30 बिहान

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